11 पिछड़ी जनजाति के लिए बांस बना कमाई का जरिया
महासमुंद 14 जनवरी 2023। बाँस कलाकृति प्रदेश में ही नहीं बल्कि अन्य देशों में लोकप्रिय शिल्पों में से एक है। बांस शिल्प की कलाकृतियां शहर, गांव के साथ ही अधिकांश घरों में किसी न किसी रूप में देखने को मिल ही जाता है, यह सुलभ, सरल एवं लोकप्रिय है। स्थानीय ग्रामीण आदिवासी और यहाँ की कमार महिलायें बांस शिल्प का उपयोग और महत्व को जानती और पहचानती है, वे बांस का काम प्रमुखता से करते है और बांस से अनेक उपयोगी एवं मनमोहक सामग्रियां तैयार करते है। बांस से टोकरी, सूपा, चटाई, झाडू समेत रोजमर्रा के घरेलू उपयोग की कई चीजें बनाई जा रही है।
महासमुंद जिले के विकासखंड बागबाहरा में लगभग 11 विशेष पिछड़ी जनजाति छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण मिशन बिहान अन्तर्गत जुड़ी है। ये जनजातियाँ पहले परम्परागत कार्य जैसे कृषि या बॉस के छोटे स्तर के बांस से टोकरी, सूपा, चटाई, झाडू आदि घरेलू सामान्य सामग्रियाँ बनाती या ज़्यादातर इस जाति के लोग रोज़ी-रोटी के लिए शहरों की ओर रुख़ करते थे। उनके परिवार की आर्थिक स्थित दयनीय होती थी। बच्चें पढ़ाई-लिखाई से दूर रहते थे। महिलायें भी बहुत कम किसी से बातचीत करती थी।
इन महिलाओं को बिहान समूह से जोड़ा गया और उन्हें सीआरपी (Community Resource Person) सामुदायिक संसाधन व्यक्ति चक्र के तहत विभिन्न बाँस और अन्य कार्य का प्रशिक्षण दिया गया। सबसे पहले ग्राम पंचायत ढोड़ की महालक्ष्मी आदिवासी महिला स्व सहायता समूह को जोड़ा गया। समूह की अध्यक्ष श्रीमत जयमोतिन कमार और सचिव रूपाबाई कमार इस तरह 10 महिलाओं का समूह बना। उनके द्वारा बांस से गुलदस्ता बनाया जा रहा है। बांस के प्रति यहां के लोगों की रूचि और उसका बेहतर उपयोग के कारण स्थानीय निवासी महिलाओं को राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविक।


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